Friday 6 January 2012

तुम तरुण हो या नहीं
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तुम तरुण हो या नहीं यह संघर्ष बतायेगा ,
जनता के साथ हो या और कहीं यह संघर्ष बतायेगा ।
तुम संघर्ष में कितनी देर टिकते हो ,
सत्ता के हाथ कबतक नहीं बिकते हो ?
इससे ही फैसला होगा -
कि तुम तरुण हो या नहीं -
जनता के साथ हो या और कहीं ।

तरुणाई का रिश्ता उम्र से नहीं, हिम्मत से है,
आजादी के लिए बहाये गये खून की कीमत से है ,
जो न्याय-युद्ध में अधिक से अधिक बलिदान करेंगे,
आखिरी साँस तक संघर्ष में ठहरेंगे ,
वे सौ साल के बू्ढ़े हों या दस साल के बच्चे -
सब जवान हैं ।

और सौ से दस के बीच के वे तमाम लोग ,
जो अपने लक्ष्य से अनजान हैं ,
जिनका मांस नोच – नोच कर
खा रहे सत्ता के शोषक गिद्ध ,
फिर भी चुप सहते हैं, वो हैं वृद्ध ।

ऐसे वृद्धों का चूसा हुआ खून
सत्ता की ताकत बढ़ाता है ,
और सड़कों पर बहा युवा-लहू
रंग लाता है , हमें मुक्ति का रास्ता दिखाता है ।

इसलिए फैसला कर लो
कि तुम्हारा खून सत्ता के शोषकों के पीने के लिए है,
या आजादी की खुली हवा में,
नई पीढ़ी के जीने के लिए है ।
तुम्हारा यह फैसला बतायेगा
कि तुम वृद्ध हो या जवान हो,
चुल्लू भर पानी में डूब मरने लायक निकम्मे हो
या बर्बर अत्याचारों की जड़
उखाड़ देने वाले तूफान हो ।

इसलिए फैसले में देर मत करो,
चाहो तो तरुणाई का अमृत पी कर जीयो ,
या वृद्ध बन कर मरो ।
तुम तरुण हो या नहीं यह संघर्ष बतायेगा ,
जनता के साथ हो या और कहीं यह संघर्ष बतायेगा ।

तुम संघर्ष में कितनी देर टिकते हो ,
सत्ता के हाथ कबतक नहीं बिकते हो ?
इससे ही फैसला होगा -
कि तुम तरुण हो या नहीं -
जनता के साथ हो या और कहीं ।

~श्याम बहादुर 'नम्र'

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आओ बहस करें 
सिद्धांतों को तहस-नहस करें
आओ बहस करें। 

बहस करें चढ़ती महंगाई पर 
विषमता की
बढ़ती खाई पर।
बहस करें भुखमरी कुपोषण पर
बहस करें लूट-दमन-शोषण पर
बहस करें पर्यावरण प्रदूषण पर
कला-साहित्य विधाओं पर।

काफी हाऊस के किसी कोने में
मज़ा आता है
बहस होने में।

आज की शाम बहस में काटें
कोरे शब्दों में सबका दुख बांटें
एक दूसरे का भेजा चाटें
अथवा उसमें भूसा भरें
आओ बहस करे....
~श्याम बहादुर 'नम्र'

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हमे नहीं चाहिए शिक्षा का ऐसा अधिकार,
जो गैर-जरूरी बातें जबरन सिखाये ।
हमारी जरूरतों के अनुसार सीखने पर पाबन्दी लगाये,

हमें नहीं चाहिए ऐसा स्कूल
जहाँ जाकर जीवन के हुनर जाँए भूल।
हमें नहीं चाहिए ऐसी किताब
जिसमें न मिलें हमारे सवालों के जवाब

हम क्यों पढ़ें वह गणित,
जो न कर सके जिन्दगी का सही-सही हिसाब।
क्यों पढ़ें पर्यावरण के ऐसे पाठ
जो आँगन के सूखते वृक्ष का इलाज न बताये॥
गाँव में फैले मलेरिया को न रोक पायें
क्यों पढ़ें ऐसा विज्ञान,
जो शान्त न कर सके हमारी जिज्ञासा ।
जीवन में जो समझ में न आये,

क्यों पढ़ें वह भाषा ।
हम क्यों पढे़ वह इतिहास जो धार्मिक उन्माद बढ़ाए
नफ़रत का बीज बोकर,
आपसी भाई-चारा घटाये।

हम क्यों पढ़ें ऐसी पढ़ाई जो कब कैसे काम आएगी,
न जाए बताई ।
परीक्षा के बाद, न रहे याद,
हुनर से काट कर जवानी कर दे बरबाद ।

हमे चाहिए शिक्षा का अधिकार,
हमे चाहिए सीखने के अवसर
हमे चाहिए किताबें ,
हमें चाहिए स्कूल।
लेकिन जो हमें चाहिए हमसे पूछ कर दीजिए।
उनसे पूछ कर नहीं जो हमें कच्चा माल समझते हैं ।
स्कूल की मशीन में ठोक-पीटकर
व्यवस्था के पुर्जे में बदलते हैं,

हमें नहीं चाहिए शिक्षा का ऐसा अधिकार जो
गैर जरूरी बातें जबरन सिखाये
हमारी जरूरतों के अनुसार सीखने पर पाबन्दी लगाये ।
~श्याम बहादुर ’ नम्र ’
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