Friday 6 January 2012

कैफ़ी आजमी


तुम
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शगुफ्तगी का, लताफत का, शाहकार हो तुम,
फ़क़त बहार नहीं हासिले-बहार हो तुम,

जो इक फूल में है कैद, वो गुलिसतां हो,
जो इक कली में है पिन्हाँ वो लालाज़ार हो तुम

हलावतों की तमन्ना,मलाहतों की मुराद,
गुरूर कलियों का, फूलों का इनकिसार हो तुम

जिसे तरंग में फितरत ने गुनगुनाया है,
वो भैरवी हो , वो दीपक हो,वो मल्हार हो तुम

तुम्हारे जिस्म में ख्वाबीदा हैं हजारों राग,
निगाह छेड़ती है जिसको वोह सितार हो तुम

जिसे उठा न सकी जुस्तजू वो मोती हो,
जिसे न गुंध सकी आरज़ू, वो हार हो तुम

जिसे न बूझ सका इश्क़ वो पहेली हो,
जिसे समझ न सका प्यार वो प्यार हो तुम

खुदा करे किसी दामन में जज़्ब हो न सके
ये मेरे अश्के-हंसी जिनसे आशकार हो तुम.

~कैफ़ी आजमी

"कारवां यादों का लौटा दिन
गुज़र जाने के बाद
फिर चला जायेगा शायद
कुछ वक़्त ठहर जाने के बाद
तिश्नगी के वास्ते था बूँद
भर पानी बहुत
क्या करे हम ले के जाम
प्यास मर जाने के बाद
कल
भारी आबादियाँ थी आज
तूफ़ान ले गया
छायी है
वीरानियाँ दरिया उतर
जाने के बाद
प्यार जब तक है दिलों में
रिश्तों में भी जान है
दुश्मनी का फिर है आलम
प्यार मर जाने के बाद
राह की दुश्वारियां हर
हाल में झेले हम
कुछ तो राहत चाहे इंसान
अपने घर जाने के बाद
मोतियों के ढेर जैसे थे वोह
गुज़रे दिन सुहाने
उनकी यादों के समेटे
वो बिखर जाने के बाद
कौन है
अपना पराया कौन है
बता
जानेंगे बस मुश्किलों में
उनके मुकर जाने के बाद"
हम जैसे लोग तो कश्ती चला के देखते है
वो ओर होंगे जो तेवर हवा के देखते है

हमे यकीं है वो इक दिन जरूर आयेगा
इसी खयाल से घर को सजा के देखते है

वो हमसे दूर बहुत दूर है मगर फिर भी
उसे ख्यालो में अक्सर बुला के देखते है

ये मशवरा है के यूं राह मे फिरा न करो
तुम्हे खबर है के बन्दे खुदा के देखते है

ये खौफ है कि बता दें न दिल के राज कहीं
उसे हम आज भी नजरें बचा के देखते है

सवाल ये नही, बनता है या नही बनता
बस उसका नक्श हवा मे बना के देखते है

कभी तो कोशिशें खुशबू को कैद करने की
कभी चिराग हवा में जला के देखते है
~अतीक इलाहाबादी
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अपना गम दिल के पास रहने दो,
मुझको यूँ ही उदास रहने दो.
नंग-ए-तहजीब न बन इतना,
कुछ तो तन पर लिबास रहने दो.
गम का सूरज भी डूब जाएगा,
दिल में इतनी सी आस रहने दो.
दौलते-ए-रंज-ओ-गम न छीन ए दोस्त,
कुछ गरीबों के पास रहने दे,
ए इमारत के तोड़ने वाले,
सिर्फ मेरा क्लास रहने दे.
करदे सारी खुशी आता उनको,
और गम मेरे पास रहने दे.
फिर तो दूरी नसीब में होगी,
और कुछ देर पास रहने दे.
~अतीक इलाहाबादी 
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जब हवा अपना रुख बदलती है.
गर्द भी साथ साथ चलती है.
दिन का सूरज उफक में डूब गया,
अब सितारों से लौ निकलती है.
याद कर-कर के अहद-ए-माजी को,
जिंदगी अपने हाथ मलती है.
झील में तैरते हैं कुछ कागज़,
देखें कब तक नाव चलती है.
गुफ़्तगू उनकी चुभ गई दिल में,
देखें ये फांस कब निकलती है.
जी रहा हूँ मैं इस तरह से अतीक,
जैसे किस्तों में रात ढलती है.
~अतीक इलाहाबादी 
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जिंदगी हादसों से गुजर आयी है.
मेरे खेतों में बदली उतर आयी है.
मेरी आँखे अचानक ही पथरा गयीं,
जब कहीं भी मुझे तू नज़र आयी है.
ज़ुल्फ़ बिखराए आँखों में सावन लिए,
इक सुहागन पिया के नगर आयी है.
भीनी-भीनी सी खुशबू है माहौल में,
तुमसे पहले तुम्हारी खबर आयी है.
मेरे घर में दहकते अलाव गिरे,
उनके आँगन में जन्नत उतर आयी है.
खत किताबों में रखके बदलते रहे,
आज शामत किताबों के सर आयी है.
ऐसा लगता है कि हर फूल पर,
उनके होंठों की सुर्खी उतर आयी है.
ऐ अतीक अब चरागों को गुल कीजिये,
आज याद उनकी फिर टूटकर आयी है.
~अतीक इलाहाबादी 
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यारों ने साथ छोड के रस्ते बदल  लिए
जब पास अपने एक भी पैसा नहीं रहा
~अतीक इलाहाबादी 

अशआर


यहाँ लिबास की कीमत है आदमी की नहीं...
साकी मुझे गिलास बड़ा दे.शराब कम कर दे!!
~बशीर बद्र

तुम तरुण हो या नहीं
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तुम तरुण हो या नहीं यह संघर्ष बतायेगा ,
जनता के साथ हो या और कहीं यह संघर्ष बतायेगा ।
तुम संघर्ष में कितनी देर टिकते हो ,
सत्ता के हाथ कबतक नहीं बिकते हो ?
इससे ही फैसला होगा -
कि तुम तरुण हो या नहीं -
जनता के साथ हो या और कहीं ।

तरुणाई का रिश्ता उम्र से नहीं, हिम्मत से है,
आजादी के लिए बहाये गये खून की कीमत से है ,
जो न्याय-युद्ध में अधिक से अधिक बलिदान करेंगे,
आखिरी साँस तक संघर्ष में ठहरेंगे ,
वे सौ साल के बू्ढ़े हों या दस साल के बच्चे -
सब जवान हैं ।

और सौ से दस के बीच के वे तमाम लोग ,
जो अपने लक्ष्य से अनजान हैं ,
जिनका मांस नोच – नोच कर
खा रहे सत्ता के शोषक गिद्ध ,
फिर भी चुप सहते हैं, वो हैं वृद्ध ।

ऐसे वृद्धों का चूसा हुआ खून
सत्ता की ताकत बढ़ाता है ,
और सड़कों पर बहा युवा-लहू
रंग लाता है , हमें मुक्ति का रास्ता दिखाता है ।

इसलिए फैसला कर लो
कि तुम्हारा खून सत्ता के शोषकों के पीने के लिए है,
या आजादी की खुली हवा में,
नई पीढ़ी के जीने के लिए है ।
तुम्हारा यह फैसला बतायेगा
कि तुम वृद्ध हो या जवान हो,
चुल्लू भर पानी में डूब मरने लायक निकम्मे हो
या बर्बर अत्याचारों की जड़
उखाड़ देने वाले तूफान हो ।

इसलिए फैसले में देर मत करो,
चाहो तो तरुणाई का अमृत पी कर जीयो ,
या वृद्ध बन कर मरो ।
तुम तरुण हो या नहीं यह संघर्ष बतायेगा ,
जनता के साथ हो या और कहीं यह संघर्ष बतायेगा ।

तुम संघर्ष में कितनी देर टिकते हो ,
सत्ता के हाथ कबतक नहीं बिकते हो ?
इससे ही फैसला होगा -
कि तुम तरुण हो या नहीं -
जनता के साथ हो या और कहीं ।

~श्याम बहादुर 'नम्र'

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आओ बहस करें 
सिद्धांतों को तहस-नहस करें
आओ बहस करें। 

बहस करें चढ़ती महंगाई पर 
विषमता की
बढ़ती खाई पर।
बहस करें भुखमरी कुपोषण पर
बहस करें लूट-दमन-शोषण पर
बहस करें पर्यावरण प्रदूषण पर
कला-साहित्य विधाओं पर।

काफी हाऊस के किसी कोने में
मज़ा आता है
बहस होने में।

आज की शाम बहस में काटें
कोरे शब्दों में सबका दुख बांटें
एक दूसरे का भेजा चाटें
अथवा उसमें भूसा भरें
आओ बहस करे....
~श्याम बहादुर 'नम्र'

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"
हमे नहीं चाहिए शिक्षा का ऐसा अधिकार,
जो गैर-जरूरी बातें जबरन सिखाये ।
हमारी जरूरतों के अनुसार सीखने पर पाबन्दी लगाये,

हमें नहीं चाहिए ऐसा स्कूल
जहाँ जाकर जीवन के हुनर जाँए भूल।
हमें नहीं चाहिए ऐसी किताब
जिसमें न मिलें हमारे सवालों के जवाब

हम क्यों पढ़ें वह गणित,
जो न कर सके जिन्दगी का सही-सही हिसाब।
क्यों पढ़ें पर्यावरण के ऐसे पाठ
जो आँगन के सूखते वृक्ष का इलाज न बताये॥
गाँव में फैले मलेरिया को न रोक पायें
क्यों पढ़ें ऐसा विज्ञान,
जो शान्त न कर सके हमारी जिज्ञासा ।
जीवन में जो समझ में न आये,

क्यों पढ़ें वह भाषा ।
हम क्यों पढे़ वह इतिहास जो धार्मिक उन्माद बढ़ाए
नफ़रत का बीज बोकर,
आपसी भाई-चारा घटाये।

हम क्यों पढ़ें ऐसी पढ़ाई जो कब कैसे काम आएगी,
न जाए बताई ।
परीक्षा के बाद, न रहे याद,
हुनर से काट कर जवानी कर दे बरबाद ।

हमे चाहिए शिक्षा का अधिकार,
हमे चाहिए सीखने के अवसर
हमे चाहिए किताबें ,
हमें चाहिए स्कूल।
लेकिन जो हमें चाहिए हमसे पूछ कर दीजिए।
उनसे पूछ कर नहीं जो हमें कच्चा माल समझते हैं ।
स्कूल की मशीन में ठोक-पीटकर
व्यवस्था के पुर्जे में बदलते हैं,

हमें नहीं चाहिए शिक्षा का ऐसा अधिकार जो
गैर जरूरी बातें जबरन सिखाये
हमारी जरूरतों के अनुसार सीखने पर पाबन्दी लगाये ।
~श्याम बहादुर ’ नम्र ’
"

पराया कौन है और कौन अपना सब भुला देंगे
मताए ज़िन्दगानी एक दिन हम भी लुटा देंगे

तुम अपने सामने की भीड़ से होकर गुज़र जाओ
कि आगे वाले तो हर गिज़ न तुम को रास्ता देंगे

जलाये हैं दिये तो फिर हवाओ पर नज़र रखो
ये झोकें एक पल में सब चिराग़ो को बुझा देंगे

कोई पूछेगा जिस दिन वाक़ई ये ज़िन्दगी क्या है
ज़मीं से एक मुठ्ठी ख़ाक लेकर हम उड़ा देंगे

गिला,शिकवा,हसद,कीना,के तोहफे मेरी किस्मत है
मेरे अहबाब अब इससे ज़ियादा और क्या देंगे

मुसलसल धूप में चलना चिराग़ो की तरह जलना
ये हंगामे तो मुझको वक़्त से पहले थका देंगे

अगर तुम आसमां पर जा रहे हो, शौक़ से जाओ
मेरे नक्शे क़दम आगे की मंज़िल का पता देंगे
~ अनवर जलालपुरी