मै जहा हू सिर्फ वही नहीं, मै जहा नहीं हू वहा भी हू
तेरे-मेरे दीन का मसअला नहीं, मसअला कोई और है
न तेरा खुदा कोई और है न मेरा खुदा कोई और है
न तेरा खुदा कोई और है न मेरा खुदा कोई और है
मै जहा हू सिर्फ वही नहीं, मै जहा नहीं हू वहा भी हूँ
मुझे यु न मुझमे तलाश कर की मेरा पता कोई और है
मुझे यु न मुझमे तलाश कर की मेरा पता कोई और है
मेरे फैसलों से खफा है जो, मेरे हौसलों से डरा है जो
मेरे साथ ही मेरी शख्सियत में छुपा हुआ कोई और है
मेरे साथ ही मेरी शख्सियत में छुपा हुआ कोई और है
वो भी वक़्त था की जब आसमाँ पे धुए का नामो-निशां न था
मगर अबके आग है कुछ अलग, मगर अब हवा कोई और है
मगर अबके आग है कुछ अलग, मगर अब हवा कोई और है
तुझे खुद से कोई गिला नहीं, मुझे खुद में मै ही मिला नहीं
तेरा आईना कोई और है मेरा आईना कोई और है
तेरा आईना कोई और है मेरा आईना कोई और है
जिस उफुक पे मै था किरण-किरण, हू उस उफुक पे धुआ-धुआ
मेरी इब्तदा कोई और थी, मेरी इन्तहा कोई और है
मेरी इब्तदा कोई और थी, मेरी इन्तहा कोई और है
मेरे फिक्रो-फन का गुरुर वो, मेरे हर सुखन का सुरूर वो
मेरा जहाँ ऐसा रबाब हो जिसे छेड़ता कोई और है
मेरा जहाँ ऐसा रबाब हो जिसे छेड़ता कोई और है
~राजेश रेड्डी
उफुक=आसमाँ, फिक्रो-फन=गुण की चिंता, इब्तदा=शुरुआत, इन्तहा=अंत
मौके को निकल जाने दिया
हाथ से हर एक मौके को निकल जाने दिया
हमने ही खुशियों को रंजोगम में ढल जाने दिया
जीत बस एक वार कि दुरी पे थी हमसे मगर
दुश्मनों को हमने मैदां में संभल जाने दिया
उम्र भर हम सोचते ही रह गए हर मोड़ पर
फ़िस्लाकुं सारे लम्हों को फिसल जाने दिया
तुम तो एक बदलाव लाने के लिए निकले थे, फिर
खुद को क्यु हालत के हाथो बदल जाने दिया
हम भी वाकिफ थे ख्यालो कि हकीक़त से, मगर
हमने भी दिल को ख्यालो से बहल जाने दिया
रफ्ता-रफ्ता बिजलियों से दोस्ती सी हो गई
रफ्ता-रफ्ता आशियाना हमने जल जाने दिया
टालते है लोग तो सर से मुसीबत कि घडी
हमने लेकिन कामयाबी को भी टल जाने दिया
हमने ही खुशियों को रंजोगम में ढल जाने दिया
जीत बस एक वार कि दुरी पे थी हमसे मगर
दुश्मनों को हमने मैदां में संभल जाने दिया
उम्र भर हम सोचते ही रह गए हर मोड़ पर
फ़िस्लाकुं सारे लम्हों को फिसल जाने दिया
तुम तो एक बदलाव लाने के लिए निकले थे, फिर
खुद को क्यु हालत के हाथो बदल जाने दिया
हम भी वाकिफ थे ख्यालो कि हकीक़त से, मगर
हमने भी दिल को ख्यालो से बहल जाने दिया
रफ्ता-रफ्ता बिजलियों से दोस्ती सी हो गई
रफ्ता-रफ्ता आशियाना हमने जल जाने दिया
टालते है लोग तो सर से मुसीबत कि घडी
हमने लेकिन कामयाबी को भी टल जाने दिया
~ राजेश रेड्डी
जाने कितनी उड़ान बाकी है
जाने कितनी उड़ान बाकी है !
इस परिंदे में जान बाकी है !!
इस परिंदे में जान बाकी है !!
जितनी बाटनी थी,बट चुकी ये जमी !
अब तो बस आसमान बाकी है !!
अब तो बस आसमान बाकी है !!
अब वो दुनिया अजीब लगती है !
जिसमे अमनो-अमन बाकी है !!
जिसमे अमनो-अमन बाकी है !!
इम्तिहा से गुजर के क्या देखा !
एक नया इम्तहान बाकी है !!
एक नया इम्तहान बाकी है !!
सर कलम होंगे कल यहाँ उनके !
जिनके मुह में जुबान बाकी है !!
जिनके मुह में जुबान बाकी है !!
~राजेश रेड्डी
जिन्दगी तुने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं
जिन्दगी तुने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं !
तेरे दामन में मेरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं !!
तेरे दामन में मेरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं !!
आप इन हाथो कि चाहे तो तलाशी ले ले !
मेरे हाथो में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं !!
मेरे हाथो में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं !!
हमने देखा है कई ऐसे खुदाओ को यहाँ !
सामने जिनके वो सचमुच का खुदा कुछ भी नहीं !!
सामने जिनके वो सचमुच का खुदा कुछ भी नहीं !!
ये अलग बात है वो रास न आया खुद को !
उस भले शख्स में वैसे तो बुरा कुछ भी नहीं !!
उस भले शख्स में वैसे तो बुरा कुछ भी नहीं !!
बाते फैली है मेरे नाम से जाने क्या-क्या !
जबकि सच ये है कि मैंने तो कहा कुछ भी नहीं !!
जबकि सच ये है कि मैंने तो कहा कुछ भी नहीं !!
या खुदा! अब ये किस रंग में आई है बहार !
जर्द ही जर्द है पेड़ो पे हरा कुछ भी नहीं !!
जर्द ही जर्द है पेड़ो पे हरा कुछ भी नहीं !!
दिल भी एक बच्चे कि मानिंद अड़ा है जिद पर !
या तो सब कुछ इसे चाहिए या कुछ भी नहीं !!
~राजेश रेड्डी
या तो सब कुछ इसे चाहिए या कुछ भी नहीं !!
~राजेश रेड्डी
रिहाई मांगता है और, रिहा होने से डरता है
यहाँ हर शख्स हर पल , हादसा होने से डरता है
खिलौना है जो मिटटी का फ़ना होने से डरता है
खिलौना है जो मिटटी का फ़ना होने से डरता है
मेरे दिल के किसी कोने में, एक मासूम सा बच्चा
बड़ो कि देख कर दुनिया, बड़ा होने से डरता है
बड़ो कि देख कर दुनिया, बड़ा होने से डरता है
बहुत मुश्किल नहीं है, आईने के सामने जाना
हमारा दिल मगर क्यों, सामना होने से डरता है
हमारा दिल मगर क्यों, सामना होने से डरता है
न बस में जिन्दगी इसके, न कबी मौत पर इसका
मगर इन्सान फिर भी कब, खुदा होने से डरता है
मगर इन्सान फिर भी कब, खुदा होने से डरता है
अजब यह जिन्दगी कि कैद है, दुनिया का हर इंसा
रिहाई मांगता है और, रिहा होने से डरता है
-राजेश रेड्डी
रिहाई मांगता है और, रिहा होने से डरता है
-राजेश रेड्डी
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